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मुक्तिबोध / अपर्णा भटनागर
मुक्तिबोध / अपर्णा भटनागर कल मैं पढ़ रही थी नेरुदा और ज़ख़्मी हो गई थीं मेरी आँखें आँसू के साथ घुल गया था लाल रंग और रात घिर गई थी इस कदर मेरे इर्द-गिर्द कि छलनी आकाश चमक रहा था चमकीले घावों से .. सिमटे -सिमटे से तारे न जाने कितने उभर आये थे उसके […]