Tag: अंजुम सलीमी

  • आईना साफ़ था धुँधला हुआ रहता था मैं / अंजुम सलीमी

    आईना साफ़ था धुँधला हुआ रहता था मैं / अंजुम सलीमी आईना साफ़ था धुँधला हुआ रहता था मैं अपनी सोहबत में भी घबराया हुआ रहता था मैं अपना चेहरा मुझे कतबे की तरह लगता था अपने ही जिस्म में दफ़नाया हुआ रहता था मैं जिस मोहब्बत की ज़रूरत थी मेरे लोगों को उस मोहब्बत […]

  • दीवार पे रक्खा तो सितारे से उठाया / अंजुम सलीमी

    दीवार पे रक्खा तो सितारे से उठाया / अंजुम सलीमी दीवार पे रक्खा तो सितारे से उठाया दिल बुझने लगा था सो नज़ारे से उठाया बे-जान पड़ा देखता रहता था मैं उस को इक रोज़ मुझे उस ने इशारे से उठाया इक लहर मुझे खींच के ले आई भँवर में वो लहर जिसे मैं ने […]

  • जस्त भरता हुआ दुनिया के दहाने की तरफ़ / अंजुम सलीमी

    जस्त भरता हुआ दुनिया के दहाने की तरफ़ / अंजुम सलीमी जस्त भरता हुआ दुनिया के दहाने की तरफ़ जा निकलता हूँ किसी और ज़माने की तरफ़ आँख बे-दार हुई कैसी ये पेशानी पर कैसा दरवाज़ा खुला आईना-ख़ाने की तरफ़ ख़ुद ही अंजाम निकल आएगा इस वाक़िए से एक किरदार रवाना है फ़साने की तरफ़ […]

  • अच्छे मौसम में तग ओ ताज़ भी कर लेता हूँ / अंजुम सलीमी

    अच्छे मौसम में तग ओ ताज़ भी कर लेता हूँ / अंजुम सलीमी अच्छे मौसम में तग ओ ताज़ भी कर लेता हूँ पर निकल आते हैं परवाज़ भी कर लेता हूँ तुझ से ये कैसा तअल्लुक़ है जिसे जब चाहूँ ख़त्म कर देता हूँ आग़ाज़ भी कर लेता हूँ गुम्बद-ए-ज़ात में जब गूँजने लगता […]

  • कल तो तेरे ख़्वाबों ने मुझ पर यूँ अर्ज़ानी की / अंजुम सलीमी

    कल तो तेरे ख़्वाबों ने मुझ पर यूँ अर्ज़ानी की / अंजुम सलीमी कल तो तेरे ख़्वाबों ने मुझ पर यूँ अर्ज़ानी की सारी हसरत निकल गई मेरी तन-आसानी की पड़ा हुआ हूँ शाम से मैं उसी बाग़-ए-ताज़ा में मुझ में शाख निकल आई है रात की रानी की इस चौपाल के पास इक बूढ़ा […]