दरख़्त रोज़ शाम का बुरादा भर के शाखों में / गुलज़ार Lyrics in Hindi

दरख़्त रोज़ शाम का बुरादा भर के शाखों में / गुलज़ार Lyrics in Hindi

दरख़्त रोज़ शाम का बुरादा भर के शाखों में
पहाड़ी जंगलों के बाहर फेंक आते हैं !
मगर वो शाम…
फिर से लौट आती है, रात के अन्धेरे में
वो दिन उठा के पीठ पर
जिसे मैं जंगलों में आरियों से
शाख काट के गिरा के आया था !!

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