वहशत-ए-दिल सिला-ए-आबलापाई ले ले / फ़राज़

वहशत-ए-दिल सिला-ए-आबलापाई ले ले / फ़राज़
वहशत-ए-दिल सिला-ए-आबलापाई ले ले
मुझसे या रब मेरे लफ़्ज़ों की कमाई ले ले

अक़्ल हर बार दिखाती थी जले हाथ अपने
दिल ने हर बार कहा आग पराई ले ले

मैं तो उस सुबह-ए-दरख़्शाँ को तवन्गर जानूँ
जो मेरे शहर से कश्कोल-ए-गदाई ले ले

तू ग़नी है मगर इतनी हैं शरायत मेरी
ये मोहब्बत जो हमें रास न आई ले ले

अपने दीवान को गलियों मे लिये फिरता हूँ
है कोई जो हुनर-ए-ज़ख़्मनुमाई ले ले

और क्या नज़्र करूँ ऐ ग़मे-दिलदारे-फ़राज़
ज़िन्दगी जो ग़मे-दुनिया से बचाई ले ले

Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *