शेर-8 / असर लखनवी
(1)
ताइरे-जाँ!1 कितने ही गुलशन तेरे मुश्ताक2 है,
बाजुओं में ताकते – परवाज3 होना चाहिए।
(2)
तुझको है फिक्रे-तनआसानी4 ‘असर’,
जिन्दगी कुर्बानियों का नाम है।
(3)
तुम्हारा हुस्न आराइश5, तुम्हारी सादगी जेवर,
तुम्हें कोई जरूरत ही नहीं बनने-संवरने की।
(4)
तूफाँ से खेलना अगर इन्सान सीख ले,
मौजों से आप उभरें, किनारे नये- नये।
(5)
तेरी अदायें दिल को लुभायें तो क्या करें,
आंखें न मानें देख ही जायें तो क्या करें।
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