शेर-2 / असर लखनवी

शेर-2 / असर लखनवी
(1)
इश्क है इक निशाते1-बेपायाँ2,
 शर्त यह है कि आरजू न हो।

(2)
 उन लबों पै झलक तबस्सुम3 की,
 जैसे निकहत 4में जान पड़ जाये।

(3)
 अहले-हिम्मत5 ने हुसूले-मुद्दआ6 में जान दी,
 और हम बैठे हुए रोया किये तकदीर को।

(4)
उनके आने की बंधी थी आस जब तक हमनशीं7,
सुबह हो जाती थी अक्सर जानिबे – दर8 देखते।
 
(5)
 उनपै हँसिये शौक से जो माइले9 – फरियाद10 है,
 उनसे डरिये जो सितम11 पर मुस्कुराकर रह गये।

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