आम आदमी / अश्वघोष

आम आदमी / अश्वघोष
व्यर्थ जा रही सारी अटकल
कितना बेबस, कितना बेकल
आम आदमी ।

मन में लेकर सपनों का घर
खड़ा हुआ है चौराहे पर
चारों ओर बिछी है दलदल
      कैसे खोजे राहत के पल
      आम आदमी ।

तन में थकन नसों में पारा
कंधों पर परिवार है सारा
कहाँ जा रहा मेहनत का फल ?
      सोच-सोच कर होता दुर्बल
      आम आदमी ।

उखड़ी-उखड़ी साँस ले रहा
संसद को आवाज़ दे रहा
मीलों तक पसरा है छल-बल
      बार-बार होता है निष्फल
      आम आदमी ।

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