अदावत में तो उसकी आज भी अंतर नहीं आया / अशोक रावत

अदावत में तो उसकी आज भी अंतर नहीं आया / अशोक रावत
अदावत में तो उसकी आज भी अंतर नहीं आया,
तअज्जुब है बहुत दिन से कोई पत्थर नहीं आया.

उसे दो मील पैदल छोड़ने जाता था मैं बस तक,
मैं उसके घर गया वो गेट तक बाहर नहीं आया.

जहाँ भी देखिए बैठे हैं लाइन तोड़ने वाले,
मैं लाइन में लगा था इस लिये नम्बर नहीं आया.

चढ़ा हूँ देख कर हर एक सीढ़ी सावधानी से,
जहाँ पर आज हूँ मैं उस जगह उड़ कर नहीं आया.

ज़माने की हवाओं का असर इतना ज़ियादा है,
किसी त्यौहार पर बेटा पलट कर घर नहीं आया.

किसी को मश्वरा क्या दूँ कि ऐसे जी कि वैसे जी,
मेरी ख़ुद की समझ में जब ये जीवन भर नहीं आया.

Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *