थोड़ी सी आग उसके भी सीने में डाल दे / अशोक ‘मिज़ाज’

थोड़ी सी आग उसके भी सीने में डाल दे / अशोक ‘मिज़ाज’
थोड़ी सी आग उसके भी सीने में डाल दे
मुझको भुलाने वाले को मेरा ख़याल दे

कुछ फ़ायदा न होगा न माने तो रो के देख
दो चार बूँद ओर समन्दर में डाल दे

आवाज़ दे के देख चली आयेगी बहार
ख़ामोशियों को बोलते लफ़्जों में ढाल दे

हल ढूँढने में अपनी सभी उम्र फूँक दें
इन पीढ़ियों को ऐसे न जलते सवाल दे

उस ज़ख़्म के लहू से मैं लिखता हूँ हर ग़ज़ल
ऐसा न हो कि कोई वो खंज़र निकाल दे

अपना सफ़र ‘मिजाज’ ज़ियादा तवील है
क़दमों को अपने और हवाओं की चाल दे

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