एक तिनका हम / अवनीश सिंह चौहान

एक तिनका हम / अवनीश सिंह चौहान
एक तिनका हम
हमारा क्या वज़न

हम पराश्रित
वायु के
चंद पल हैं आयु के
एक पल अपना ज़मीं है
दूसरा पल है गगन

ईंट हम
इस नीड़ के
ईंट हम उस नीड़ के
पंछियों से हर दफ़ा
होता गया अपना चयन

ग़ौर से
देखो हमें
रँग वही हम पर जमे
वो हमी थे, जब हरे थे
बीज का हम कवच बन

हम हुए
जो बेदख़ल
घाव से छप्पर विकल
आज भी बरसात में
टपकें हमारे ये नयन

साध थी
उठ राह से
हम जुड़ें परिवार से
आज रोटी सेंक श्रम की
ज़िंदगी कर दी हवन

Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *