आज के माहौल में अपना कहाँ मिलता / अवधेश्वर प्रसाद सिंह
आज के माहौल में अपना कहाँ मिलता।
हम सबों को इक तरह सपना कहाँ मिलता।।
रहनुमा को राह में बस ताज ही दिखता।
ताज को ढकने यहाँ झपना कहाँ मिलता।।
जात के हथियार को ये खूब पिजाते हैं।
पाप को ढँकने यहाँ ढँकना कहाँ मिलता।।
घर रसोई में बहुत खाना पड़ा रहता।
चाहिए जितना मुझे उतना कहाँ मिलता।।
आपसे मिलकर मुझे खुशियाँ बहुत मिलती।
हर किसी को अब यहाँ बधना कहाँ मिलता।।
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