मित्रता / अरुण देव

मित्रता / अरुण देव

देह पर एक जैसी शर्ट
एक उसके पास

चाहे उड़ जाए रंग
घिसकर कमजोर पड़ जाए धागा
फट जाए जेब
और दिखे कपड़े के पीछे का बदरंग चेहरा
पर जिद कि आत्मा की उसी रौशनी में झिलमिलाए मन

बढ़ा कर छू लें
नदियोँ.पहाड़ों और रेगिस्तानों के पार
उसके जीवन के वे हिस्से
जिसमें सघनता से रहते हैं दो प्राण

ईर्ष्या मोह में डूबे दो अलग संसार को
जोड़ने वाला
हिलता हुआ यह पुल.

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