चाँदनी रात में लांग ड्राइव / अरुण आदित्य

चाँदनी रात में लांग ड्राइव / अरुण आदित्य
तुम्हारे साथ लांग ड्राइव पर न जाता
तो पता ही न चलता
कि तुम कितने प्यारे दोस्त हो, चाँद भाऊ !
 
गजब का है तुम्हारा सहकार
कि जिस गति से चलती है मेरी कार
उसी के मुताबिक घटती बढ़ती है तुम्हारी रफ़्तार
 
एक्सीलरेटर पर थके पैर ने जब भी सोचा
कि रुककर ले लूँ थोड़ा दम
तुमने भी तुरन्त रोक लिए अपने क़दम ।
 
गति अवरोधक पर
या सड़क के किसी गड्ढे में
जब भी लगा मुझे झटका
तुम्हें भी हिचकोले खाते देखा मैंने ।
 
नहीं, ये छोटी मोटी बातें नहीं हैं, चाँद भाऊ !
तुम्हें क्या पता कि हमारी दुनिया में
हमेशा इस फ़िराक मैं रहते हैं दोस्त
कि कब आपके पाँव थकें
और वे आपको पछाड़ सकें
 
आपदा-विपदा तक को
अवसर में बदलने को छटपटाते लोग
ताड़ते रहते हैं कि कब आप खाएँ झटके
और वे आपकी तमाम सम्भावनाएँ लपकें
 
इसीलिए मैं अक्सर इस दुनिया को ठेंगा दिखा
तुम्हारे साथ निकल जाता था लांग ड्राइव पर
लेकिन आजकल पेट्रोल बहुत महँगा है, चाँद भाऊ !
और लांग ड्राइव एक सपना
 
क्या ऐसा नहीं हो सकता
कि किसी दिन मेरी कार को अपनी किरणों से बान्धकर
झूले की तरह झुलाते हुए लांग ड्राइव पर पर ले चलो
और झूलते-झूलते, झूलते-झूलते
किसी बच्चे की तरह थोड़ी देर सो जाऊँ मैं ।

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