छुप जाता है फिर सूरज जिस वक़्त निकलता है / अमीर इमाम

छुप जाता है फिर सूरज जिस वक़्त निकलता है / अमीर इमाम
छुप जाता है फिर सूरज जिस वक़्त निकलता है
कोई इन आँखों में सारी रात टहलता है

चम्पई सुब्हें पीली दो-पहरें सुरमई शामें
दिल ढलने से पहले कितने रंग बदलता है

दिन में धूपें बन कर जाने कौन सुलगता था
रात में शबनम बन कर जाने कौन पिघलता है

ख़ामोशी के नाख़ुन से छिल जाया करत हैं
कोई फिर इन ज़ख़्मों पर आवाज़ें मलता है

रात उगलता रहता है वो एक बड़ा साया
छोटे छोटे साए जो हर शाम निगलता है

Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *