स्मृतियाँ जीवट होती हैं / अमित कुमार अम्बष्ट ‘आमिली’

स्मृतियाँ जीवट होती हैं / अमित कुमार अम्बष्ट ‘आमिली’
अपनी उजली साड़ी के एक कोर को
दांतों में दबाकर
उनकी बूढ़ी अंगुलियों ने बरबस
महसूसने की कोशिश की थी
कोई पुरानी रंगीन तस्वीर,
अंगलियों की पोरों से अनायास
कोई जलप्रपात फूटा था,
ज़ख्म समेटे अक्सर खिलखिलाते ओठों पर
कुछेक ठहरी-सी भंगिमाएं पसर गयी थीं,
आधी रात जुगनुओं को जैसे किसी ने
गहरी नींद से जगा दिया हो
एलबम के पलटते पन्नों के साथ
जैसे बह निकली थी कोई नदी:
अपने विवाह पर लाल जोड़े में सजी
उस दुल्हन को मैंने इस उम्र में भी
कभी गमगीन नहीं देखा,
पर आज आंखों की कोरों का गीलापन
उनकी स्मृतियों से लोहा ले रहा था
एक तस्वीर आगरा की थी
जिसमें नवविवाहित दम्पती के ठीक पीछे
ताजमहल था प्रेम की गवाही देता,
एक तस्वीर में तो दोनों ने
दिल्ली के कुतुब मीनार के सर पर
तलहथियों से बना रखी थी छतरी,
एक और तस्वीर जिसमें
अंगुलियों के बने वृत्त की परिधि में
सूरज समा लिया था,
एक तस्वीर किसी अस्पताल की भी,
जहाँ कोई कीमती समान वो खो आयी थी
लेकिन इससे पहले कि मैं देख पाता उसको,
अचानक उन्होंने झटके से
बंद कर दिया था वह पुराना एलबम!
अब उनकी हंसी और सहजता फिर लौट आई
जैसे समुंदर से वापस लौट आयी हो कोई नदी
स्मृतियाँ जीवट होती हैं,
विस्मृत होती हैं पर मरती नहीं हैं !
आज उन्होंने तकरीबन सत्ताइस साल बाद
हाथों में फिर उठाया है पेंटिंग ब्रश
कोरी रेशमी साड़ी पर उभर आई हैं
कुछ जीवंत कलाकृतियाँ,
सफेद साफ तलहथियों ने स्पर्श किए हैं
फिर से कुछ रंग

जीवन के ठहरे बेरंग पानी से
कृत्रिम ही सही, ऊंचाइयां छूते ये रंगीन फब्बारे
हमसे हमारे मैं को मरने नहीं देते,
और वक्त के चाक पर हम पुनः
नयी स्मृतियाँ गढ़ने लगते हैं !

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