रकीबों के ख़ातिर दुआ कर चले / अमन चाँदपुरी

रकीबों के ख़ातिर दुआ कर चले / अमन चाँदपुरी
रकीबों के ख़ातिर दुआ कर चले
मुहब्बत तेरा हक़ अदा कर चले
 
यही इश्क़ तेरा मुक़द्दर रहा
वफ़ा के सिपाही जफ़ा कर चले

वो जिनसे थीं रौशन मेरी महफ़िलें
वही दिल को मेरे बुझा कर चले

तुम्हीं तुम हो दिखते हमें चार सू
तुम्हें आँख में हम बसा कर चले

जली बस्तियाँ ढह गए सब मकाँ
ये दंगे सभी का बुरा कर चले

यहाँ कौन कब लूट ले क्या खबर
हर इक शख़्स ख़ुद को बचाकर चले

वो हाथों में ग़ज़लें लिए फिर रहा
कहो उससे ग़ज़लें छुपाकर चले

है नफ़रत की ज़द में ‘अमन’ का जहाँ
सकूं के पयम्बर दग़ा कर चले

Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *