ख़याल रखना / अपर्णा अनेकवर्णा

ख़याल रखना / अपर्णा अनेकवर्णा
परीक्षा ही होती हैं दूरियाँ..
किसी भी फ़िक्र.. घबराहट की
किसी को कोई ज़रुरत नहीं
क्यूंकि सारे सच भी..
एक फ़ासले पर.. झूठ ही हैं

पास होना ही..
सबसे बड़ा सच होता है
अपने स्याह.. सफ़ेद रंग लिए..
स्लेटी चहबच्चे बनाता रहता है

‘नज़दीकियाँ’ साथ की मोहताज नहीं
पर साथ के तृप्त शोर के पार..
कोशिश करना सुन सको..
दूर बैठे किसी सच को…

फ़िक्र को कोई हक़ नहीं मिलता..
वो बस जलता-गलता रहता है…
अपनी ही लगाई जठराग्नि में..
बेचारगी का तमगा भी दुनिया..
अपने कायदों से ही देती है..

इसलिए.. ख्याल रखना..

Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *