सन १८०० की बागान औरतें / अनुराधा सिंह

सन १८०० की बागान औरतें / अनुराधा सिंह
काली औरतें
जंगल पहाड़ समुद्र और
कोयला में भी पायी जाती थीं
उगाई जातीं लुइविल और केंटुकी में
तोड़ कर बेच दी जातीं क्यूबा और त्रिनिदाद में
वहाँ भी जन्म लेती जहाँ मिट्टी सिर्फ सफ़ेद रंग पैदा कर सकती है
जबकि धमनियों में बहता लाल रक्त कण थीं
क्योंकि सफ़ेद रक्त कणों की तरह लड़ना नहीं जानतीं थीं

साँवली मछलियों सी
ओहायो में फिसलकर गिरतीं थीं मनुष्यता के साथ
रक्तहीन पांवों से चलती आतीं
दुनिया की काली रेत पर
बिना छोड़े निशान काले इतिहास में
एक दिन ज़मीन पर रहना सीखगयीं
पकातीं खातीं बच्चे जनतीं
झगड़तीं हँसतीं
गृहस्थिन हो जातीं
दुनिया नहीं भूली उनका मछली होना
तल कर भून कर सुखा कर खाया
बिल्लियाँ छीन ले गयीं अधबीच
उकाब लहरों की पीठ से झपट ले गए
मछुआरों ने छोड़ दिया दलदल में मरने
फिर भी हम चाहते रहे बनी रहें हमारे बीच
बनी रहें गोरी औरतों के नज़रबट्टे सी
गलाज़त के प्रति सहनशील
दुनिया के पिछवाड़े बने घूरे सी विनम्र

वे नाचना जानती थीं
क्या खूब नाचती थीं
यह हम जानते थे
बहुत खूब जानते थे
क्योंकि उनके नृत्य में नहीं देखते थे कला या नफासत
हमारी काली करतूतें देखती थीं
एक अश्वेत कमनीय देह
आंदोलित अकथ पीड़ा से जिसे नृत्य कहते हैं।

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