हाँ! मैं कविता लिख देता हूँ! / अनुपम कुमार
हाँ! मैं कविता लिख देता हूँ!
जब दिल में रखी कोई बात
बहुत दिनों के बाद
सुलगाने लगे मेरे जज़्बात
और दिल जलने लगता है
बात की धाह से
और उसकी बेचैन लपटें
मुंह को आने लगती हैं
और मुझे ज़ुबान खोलने में डर लगता है
अपनों के सामने
परायों के सामने
तब मैं दिल की भट्ठी से
अपनी जलती बातों को
कलम की चिमटी से
हौले से पकड़कर
उसे काग़ज़ की दरी पर
इत्मीनान से सुला देता हूँ
आराम से आराम के लिये
पर इसमें चिमटा गरम हो जाता है
दरी जल जाती है
और बात!
लाल से काली-उजली हो जाती है
पर दिल को ठंढक तो पड़ जाती है यार!
हाँ! मैं कविता लिख देता हूँ! / अनुपम कुमार
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