आदमी के अन्दर रहता है एक और आदमी / अनुपमा तिवाड़ी

आदमी के अन्दर रहता है एक और आदमी / अनुपमा तिवाड़ी
आदमी के अन्दर
रहता है
एक और आदमी
रहते हैं दोनों
साथ-साथ
पर खूब झगड़ते हैं
चलते रहते हैं
उनके बीच द्वंद्व
उन दोनों को झगड़ते देखा है मैंने
बहुत बार
एक रात तो रात के आदमी ने कह दिया
“देख, जैसे-जैसे तू बूढ़ा होगा,
मैं और, और जवान होऊँगा”
इस बात पर रात भर हुई थी
दोनों के बीच खूब कहासुनी
तब से रात का आदमी रहने लगा था
दिन में चुप-चुप
पर रात तो उसकी अपनी थी न!
मैंने अपने बुज़ुर्गों से सुना था
कि पहले ये दोनों हमेशा साथ-साथ रहते थे
पता नहीं इनके बीच अब ऐसा क्या हो गया
कि दोनों रहने लगे हैं अब
अलग-अलग
दिन का आदमी अब उसे सुनना ही नहीं चाहता
पर रात का आदमी भी कम थोड़े ही है
वो चुप कहाँ रहने वाला है ?
चाहे हार जाए दिन के आदमी से
ओ, रात के आदमी
मैंने सुना है, तुम बहुत ताकतवर हो
तुम लड़ो न,
इस दिन के आदमी से
पता है तुम ही जीतोगे
तुम में बहुत ताकत है यार!
बस तुम बाहर आ कर खड़े हो जाओ
और फिर दिन में भी चलो इस आदमी के साथ
जो घूम रहा है
तुमसे अलग-अलग
फिर देखो आदमी,
आदमी लगने लगेगा

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