उनकी क़ब्र पर जाते हुए / अनुज लुगुन

उनकी क़ब्र पर जाते हुए / अनुज लुगुन
(शहीद विलियम लुगुन को याद करते हुए)

बहुत नम हैं पेड़ों की पत्तियाँ
हवा भी गीली हो रही है
बरस जाना चाहते हैं सभी
ख़ुद को नए आकार में ढालने के लिए
सखुआ और करम के चेहरे पर सार है
सदियों से संचित गुस्से का

यहाँ पैरों पर छाले लेकर पहुँचे हैं लोग
वे जानते हैं
उनकी आँखों का सोता यहीं है
वे लौट जाना चाहते हैं अपने सोते में

क़ब्र पर सिसिकियों का सन्नाटा है
वहाँ खड़ी आकृतियाँ ही भाषा है
वे बात करती हैं क़ब्र के लोगों से

वे लौटाना चाहते हैं आगामी पीढ़ियों को
हवा, पानी, और जंगल
वे माँदल को गीत लौटाना चाहते हैं
बैलों को हल
वे पृथ्वी को वापस पृथ्वी लौटाना चाहते हैं
वे आदमी के आदमी होने को लौटाना चाहते हैं
बँटवारे के विरूद्ध वे
आदमी का एक रंग चाहते हैं
जैसे कि ख़ून का रंग होता है
जैसे कि उन्होंने कहा था
आदिवासी हो या सदान, या चाहे जो भी हो इनसान
वे ग़रीब होने से कमज़ोर नहीं हो जाते
सहिया न जोड़ाने से वे बेज़ार हो जाते हैं

यह बात
कितनी अजीब लगती होगी क़ब्र के लोगों को
कि जीवित लोग लौटते हैं बार-बार
क़ब्र की ओर मृत्यु के विरुद्ध

वे खड़े हैं
उनकी आँखें नम हैं
उनकी आँखें बन्द हैं
वे मौन हैं
यह शपथ है
अब तक हारे हुए लड़ाई के विरुद्ध / विजेता को जीतने के लिए
थोड़ी देर में उनमें से ही कोई
एक जगह निश्चित कर लेगा
अपने लिए उसी क़ब्र में
और यहाँ से जाते हुए लोगों की आँखों में नमी बची रह जाएगी

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