मन पटल पर / अनीता सिंह

मन पटल पर / अनीता सिंह
मन पटल पर
क्षितिज को
आकार लेने तक रुकें।

मैं धरा धरणी धरित्री
तू फ़लक अम्बर गगन
तू पवन पानी सुधाकर
मैं हवा विद्युत् अगन
आ, परस्पर
स्नेह का व्यापार
होने तक रुकें।

पुष्प प्रेमी तुम भ्रमर हो
मैं कुसुम की सखी तितली
तुम रसिक रस पान करते
ढूंढने मैं रंग निकली
धरा पर
मकरंद से
श्रृंगार होने तक रुकें।

कृति ईश्वर की पुरुष तुम
रूप रंग ओ गान तुमसे
है प्रकृति मुझमें समाहित
धूप गंध ओ तान मुझसे
नव दिवस की
कल्पना
साकार होने तक रुकें।

Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *