पाले हुए जो ज़ख्म जुबां पर उतर गए / अनिरुद्ध सिन्हा
पाले हुए जो ज़ख्म जुबां पर उतर गए
रिश्ते तमाम कट गए जज़्बात मर गए
घर की तलाश और मुहब्बत की चाह में
निकले थे जो वो लोग न जाने किधर गए
ये और बात है कि हमें कुछ नहीं मिला
जब ज़िन्दगी की खोज में हम चाँद पर गए
साये की तरह रहते थे जो साथ –साथ वो
रस्ते में अब मिले भी तो बचकर गुज़र गए
खुशबू तुम्हारे जिस्म की ये काम कर गई
काँटों पे चल रहे थे अचानक ठहर गए
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