निकल न पाया कभी उसके दिल से डर मेरा / अनिरुद्ध सिन्हा

निकल न पाया कभी उसके दिल से डर मेरा / अनिरुद्ध सिन्हा
निकल न पाया कभी उसके दिल से डर मेरा
इसीलिए तो जलाया है उसने घर मेरा

तमाम रात जो तुम बेखुदी में रहते हो
तुम्हारे दिल पे है शायद अभी असर मेरा

मैं उस गली में अकेला था इसलिए शायद
हवाएँ करती रहीं पीछा रात भर मेरा

न जाने कौन सी उम्मीद के सहारे पर
ग़मों के बीच भी हँसता रहा जिगर मेरा

नई सुबह के नए इंतज़ार से पहले
खुला हुआ था तेरी याद में ये दर मेरा

Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *