अधूरा / अनिता मंडा

अधूरा / अनिता मंडा

एक अधूरे छूटे संवाद में ठहरी हुई बातें हैं
सारी आँधियाँ
जो कहना था वो कभी नहीं आता होठों तक
अधूरा छूटा स्वप्न भूल जाता है सही रास्ता

भटकने को टूटते हैं सारे झरने
जीने की इच्छा उन्हें नदी बनाती है.

तारे तालाब में झील में उतर नींद लेते हैं
रात जागती है उनींदी
एक मछली हिलकर क़रीब लाती है
दो तारों को

रात के परिश्रम का पसीना है ओस
कभी बासी नहीं होती
इसे चखने सूरज कल भी
समय से निकलेगा

धुंध है धरती का सूरज से अबोला
वह हटा ही देगा बीच में पसरा पर्दा
आखिर तो चुप्पी को टूटना ही है

शहद है चुम्बनों का संचय
हर बूँद भीतर तक मीठी
जीवन का शहद है प्रेम
अधूरा, मीठा!

Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *