कविता: तीन (मुझमें जागी है नयी आशा…) / अनिता भारती

कविता: तीन (मुझमें जागी है नयी आशा…) / अनिता भारती
मुझमें जागी है नयी आशा
मन चहक रहा है
उड़ने को बेताब
नए पंख मिले हैं मुझे
छोटा-सा घरौंदा क्यों सारी दुनिया मेरी है
आंखों में भर लूं आसमान
दौड़ जाऊं इठला कर बादलों पर
कि सारी दुनिया मेरी है
मन की कलियां सतरंगी सपने बुन रही हैं
सूरज की गमक आंखों में भर रही है
भिक्षुणी-सा उन्मुक्त ज्ञान
चारों ओर से बटोर लाऊं
अंधेरे बुझे कोनों में सौ-सौ दीप रख आऊं…!

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