रूढ़ियों की बेड़ियाँ / अनामिका सिंह ‘अना’

रूढ़ियों की बेड़ियाँ / अनामिका सिंह ‘अना’
दूर तक छाया नहीं है, धूप है
पाँव नंगे राह में कीले गड़े ।

लोकहित चिन्तन बना
साधन हमें,
खोदना है रेत में
गहरा कुआँ,
सप्तरंगी स्वप्न देखे
आँख हर,
दूर तक फैला
कलुषता का धुआँ,
 
कर रहे पाखण्ड
प्रतिनिधि बैर के,
हैं ढहाने दुर्ग
सदियों के गढ़े ।

रूढ़ियों की बेड़ियाँ
मजबूत हैं.
भेड़ बनकर
अनुकरण करते रहे,
स्वर उठे कब हैं
कड़े प्रतिरोध के,
जो उठे असमय वही
मरते रहे,

सोच पीढ़ी की
हुई है भोथरी
तर्क, चिन्तन में
हुए पीछे खड़े ।

हो सतह समतल
सभी के ही लिए,
भेद भूलें वर्ग में
अब मत बँटें,
 खोज लें समरस
 सभी निष्पत्तियाँ,
 शाख रुखों से नहीं
 ऐसे छँटें,

काट दें नाखून
घातक सोच के,
चुभ रहे सद्भाव के
बेढब बढ़े ।

Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *