भाव मन के सब उपासे / अनामिका सिंह ‘अना’

भाव मन के सब उपासे / अनामिका सिंह ‘अना’
नोंक है टूटी क़लम की,
भाव मन के सब उपासे।

चीख का मुखड़ा दबा है,
और सिसकती टेक है।
शब्द हैं बनवास पर,
शून्यता अतिरेक है।

सर्जना का क्या सुफल जब,
गीत के हों बंध प्यासे।

छप रहे हैं नित धड़ाधड़,
पृष्ठ हर अखबार में।
क्षत-विक्षत कोपल मिली है,
फिर भरे बाज़ार में।

और फिर हम हिन्दू-मुस्लिम,
के बजाते ढोल ताशे।

दूर हैं पिंडली पहुँच से,
ऊँचे रोशनदान हैं।
कैद दहलीज़ों के भीतर,
पगड़ियों की शान हैं।

जन्म पर जिनके बँटे थे,
खोंच भर भी न बताशे।

प्रश्न तुझसे है नियंता,
क्यों अभी तक मौन है।
बिन रज़ा पत्ता न हिलता,
बोल आखिर कौन है।

मरघटी मातम न दिखता,
छाये क्या ऊपर कुहासे!

Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *