पहचान / अदनान कफ़ील दरवेश
बचपन में मुझे
माँ और पिता के बीच में
सुलाया जाता
मेरी नींद कभी-कभार
बीच रात में ही
टूट जाती
और मैं उठते ही माँ को ढूँढता।
घुप्प अन्धेरे में
एक जैसे दो शरीरों में
मैं अन्त नहीं कर पाता
इसलिए मैं
अपनी तरफ़ ढुलक आए
दोनों चेहरों को टटोलता।
पिता की नाक
काफ़ी बड़ी थी
सो मैं उन्हें पहचान जाता
मेरे लिए जो पिता नहीं थे
वो ही माँ थी
इस तरह मैंने अन्धेरे में
माँ को पहचानना सीखा।
(रचनाकाल: 2016)
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