अकेलापन / अदनान कफ़ील दरवेश

अकेलापन / अदनान कफ़ील दरवेश
एक

अकेलापन तुम्हें घेरेगा हवा की तरह
तुम्हें उदास करेगा जैसे पतझड़ में झड़ते हैं सूखे पत्ते
और उदास हो जाती है प्रकृति
अकेलापन तुम्हें धिक्कारेगा तुम्हें बहलाएगा तुम्हें पगलाएगा
अकेलापन तुम्हें अवकाश देगा आत्मा के छन्द को सुनने का
उसे रचने के औज़ार तराशने का
अकेलापन तुम्हें उलझाएगा
तुम्हें स्मृतियों के समुद्र में डुबाएगा
तुम्हें रुलाएगा
तुम्हारे गीले आकाश पर तारों की तरह टिमटिमाएगा वो
तुम्हें मसखरे की तरह हँसाएगा
अकेलापन तुमसे शाम के झुटपुटे में बेल की तरह लिपट-लिपट जाएगा

अकेलापन एक जगह होगी
जहाँ तुम ‘होने’ का अर्थ खोजोगे
अकेलापन तुम्हें अधिक मनुष्य और अधिक निष्ठुर बनाएगा ।

दो

तपती है दुपहरिया
उड़ती है लू
कमरे में जमती है महीन धूल की चादर
कानों को अखरती है पँखे की कर्कश आवाज़

किताबें मुँह फुलाए घूरती हैं
देख-देख हतोत्साहित होता हूँ
उँगलियाँ चटकाता हुआ

आत्मा धँसती है शरीर की झाड़ियों में
देह धँसती है बिस्तरे में

दिन का डाकिया
उड़ेल देता है बालकनी पर सुनहरे पत्र
सूख जाते हैं अलगनी पर रँग-बिरँगे कपड़े
जिन्हें फैलाते हैं कोमल हाथ
देर तक गूँजती है गलियारे में नन्ही बच्ची की आवाज़
उड़ जाती है डाल से आख़िरी चिड़िया

एक स्त्री की चीख़ घुट जाती है उसके सूने बरामदे में
वो हँसती है जैसे फट जाता है साज़ का पर्दा
खीझती है ख़ुद पर; पटकती है बर्तन
हँसती है और छुप कर रो-रो लेती है

जर्जर पेट ऐंठता है दोनों का
दुखती है गुदा…

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