हा ! आज / अतुल कनक

हा ! आज / अतुल कनक
आज
माता-पिता की शादी की
सत्तावनवीं वर्षगाँठ थी
और मैं बचता रहा माँ को बधाई देने से
बधाई देना तो दूर की बात है
आज उल्लास की
कोई बात भी नहीं की घर में ।

माँ ने सीधे-सीधे तो कुछ नहीं कहा
पर, जैसे याद दिलाने की
करती रही है कोशिश बार-बार
कभी इस बहाने से
तो कभी उस बहाने से ।

सात साल पहले
जब पचास बरस पूरे हुए थे
माता-पिता के विवाह को,
इतना उत्सव रहित नहीं था मैं
कि मैंने ख़ुशबू से भिगो दिया था
अपनी सामर्थ्य भर आसमान
और बधाई संदेश उकेर दिए थे
हवा की अँगडाइयों पर भी
 
उस साल पिता को
भेंट में दिया था जो कुर्ता-पायजामा,
वह अभी भी उदासी ओढकर
गुमसुम पडा है मेरी अलमारी में
न वो मुझसे कुछ कहता है
न मैं जुटा पाता हूँ हिम्मत
उससे बात करने की
कि आज भी ख़ामोश रहा
अलमारी में रखा वह कुर्ता-पायजामा
और आज भी जानबूझ कर
अनदेखा कर दिया मैंने उसे
पिता को ही नहीं मंज़ूर मुझसे बतियाना
तो कपडों से तो
बात भी क्या करे कोई ?

आज
माता-पिता की शादी की
सत्तावनवीं वर्षगाँठ थी
और मैंने माँ को नहीं दी बधाई /
कि आज मैंने
फूल भी नहीं चढाए
अपने स्वर्गवासी पिता की तस्वीर के आगे ।

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