मैं ने देखा : एक बूंद / अज्ञेय

मैं ने देखा : एक बूंद / अज्ञेय
मैं ने देखा
एक बूंद सहसा
उछली सागर के झाग से–
रंगी गई क्षण-भर
ढलते सूरज की आग से।
— मुझ को दीख गया :
सूने विराट के सम्मुख
हर आलोक-छुआ अपनापन
है उन्मोचन
नश्वरता के दाग से।

Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *