शहर / अखिलेश श्रीवास्तव

शहर / अखिलेश श्रीवास्तव
कविता का शहर अदृश्य होता है
शब्द तो बस पगडंडीयाँ हैं
उस अदृश्य तक पहुँचानें को।

एक नगर जिसमें भावों की बसावट है
प्रेम की अनगिनत झोपड़ियाँ है
करूणा के जलसोत्र है
नफरत के दरकते हुए किले है।

शब्द अक्षरों से बुना हुआ भुलभुलैया है
चन्द्र बिंदु पर आसमान छूता एक भाव
अक्षरों की देह पर सरकता हुआ
हलन्त तक आते-आते विलीन हो जाता है।

जब कोई शब्द उचारा नहीं गया था
न लिखा गया था कोई अक्षर रेत पर
कविताएँ तब भी गुंजायमान थी
सबसे पहली कविता आदमी ने नहीं लिखी
विरह के मारे क्रोंच पंक्षियों ने लिखी।

कविता तक पहुँचना हो
तो शब्दों का तिलिस्म तोडो
पूर्णविरामों की दरबानी हटाओ.

सबसे बडी और अच्छी कविताएँ
दो शब्दों के बीच खाली जगहों में होती है
आधे शब्द प्रेम के घर होते हैं
सबसे ज़्यादा शब्दों में लिखी जाती है
तोंदिल कविताएँ।

कवियों
कविता पर चर्बी चढ़ाने से बचो।

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